किसी का अस्तित्व और पहचान उसके गुणों से ही होती है न कि धर्म या जाति से.
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Updated: June 22, 2018, 5:11 PM IST
इतने में वैशाली के राजा भी वहां आ पहुंचे. उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया. बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया. बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही. इस बार बालिका ने साहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया.
इस पर बुद्ध ने कहा, “सुनो राजन! यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं. जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती.”
इस प्रसंग की सीख है कि किसी का अस्तित्व और पहचान उसके गुणों से ही होती है न कि धर्म या जाति से. किसी का उपहास करने से पहले उस व्यक्ति के भीतर झांकना जरूरी है.
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Updated: June 22, 2018, 5:11 PM IST
एक बार वैशाली के बाहर जाते हुए गौतम बुद्ध ने देखा कि कुछ सैनिक तेजी से भागती हुई एक लड़की का पीछा कर रहे हैं. वह डरी हुई लड़की एक कुएं के पास जाकर खड़ी हो गई. वह हांफ रही थी और प्यासी भी थी. बुद्ध ने उस बालिका को अपने पास बुलाया और कहा कि वह उनके लिए कुएं से पानी निकाले, खुद भी पिए और उन्हें भी पिलाये. इतनी देर में सैनिक भी वहां पहुंच गये. बुद्ध ने उन सैनिकों को हाथ के संकेत से रुकने को कहा.उनकी बात पर वह कन्या कुछ झेंपती हुई बोली “महाराज! मै एक अछूत कन्या हूँ. मेरे कुएं से पानी निकालने पर जल दूषित हो जाएगा.”
बुद्ध ने उस से फिर कहा “पुत्री, बहुत जोर की प्यास लगी है, पहले तुम पानी पिलाओ.
इतने में वैशाली के राजा भी वहां आ पहुंचे. उन्हें बुद्ध को नमन किया और सोने के बर्तन में केवड़े और गुलाब का सुगन्धित पानी पानी पेश किया. बुद्ध ने उसे लेने से इंकार कर दिया. बुद्ध ने एक बार फिर बालिका से अपनी बात कही. इस बार बालिका ने साहस बटोरकर कुएं से पानी निकल कर स्वयं भी पिया और गौतम बुद्ध को भी पिलाया.
पानी पीने के बाद बुद्ध ने बालिका से डर का कारण पूछा. कन्या ने बताया मुझे संयोग से राजा के दरबार में गाने का अवसर मिला था. राजा ने मेरा गीत सुन मुझे अपने गले की माला पुरस्कार में दी. लेकिन उन्हें किसी ने बताया कि मै अछूत कन्या हूं. यह जानते ही उन्होंने अपने सिपाहियों को मुझे कैद खाने में डाल देने का आदेश दिया. मैं किसी तरह उनसे बचकर यहां तक पहुंची थी.
इस पर बुद्ध ने कहा, “सुनो राजन! यह कन्या अछूत नहीं है, आप अछूत हैं. जिस बालिका के मधुर कंठ से निकले गीत का आपने आनंद उठाया, उसे पुरस्कार दिया, वह अछूत हो ही नहीं सकती.”
इस प्रसंग की सीख है कि किसी का अस्तित्व और पहचान उसके गुणों से ही होती है न कि धर्म या जाति से. किसी का उपहास करने से पहले उस व्यक्ति के भीतर झांकना जरूरी है.
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